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ना दिन-रात की फ़िक्र, ना अपने-पराए का अंतर... कर्त

ना दिन-रात की फ़िक्र, ना अपने-पराए का अंतर... कर्तव्यों की खातिर जो मौत से भी लड़ रहा... उन्हें समर्पित सुकृति माधव मिश्र द्वारा रचित यह कविता 'मैं खाकी हूं'.... वंदे मातरम्

ना दिन-रात की फ़िक्र, ना अपने-पराए का अंतर... कर्तव्यों की खातिर जो मौत से भी लड़ रहा... उन्हें समर्पित सुकृति माधव मिश्र द्वारा रचित यह कविता 'मैं खाकी हूं'.... वंदे मातरम्

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