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"सिर-चढ़ी जुबान" दौलत नई , शोहरत नई ,और सिर

"सिर-चढ़ी जुबान"

      दौलत नई , शोहरत नई ,और सिर-चढ़ी जुबान
      मगरूरियत ,की शाख पर ,फिर-फिर चढ़ी जुबान

     नई रोशनी ,की चौंध पर, यूं आंखें बिदक गई
      कल रात के ,कुछ हाथ थेे ,सबसे लड़ी जुबान

      पिछले पहर की बात है ,तब ठीक-ठाक थी
      कैसे हुई इक रात में ,खुद से बड़ी जुबान

           जो पूछ लेें ,क्या बात है ,कुछ पा लिया है क्या
         मेरी नाक पर, झपट पड़ी, ये नकचढ़ी  जुबान

        आखिर गई ,वो रोशनी ,फिर रात चढ़ रही
           बहर-हाल ,कुछ यूं हुआ ,के गिर पड़ी जुबान!!
 












 #kavishala #सिर-चढ़ी जुबान#poetry
"सिर-चढ़ी जुबान"

      दौलत नई , शोहरत नई ,और सिर-चढ़ी जुबान
      मगरूरियत ,की शाख पर ,फिर-फिर चढ़ी जुबान

     नई रोशनी ,की चौंध पर, यूं आंखें बिदक गई
      कल रात के ,कुछ हाथ थेे ,सबसे लड़ी जुबान

      पिछले पहर की बात है ,तब ठीक-ठाक थी
      कैसे हुई इक रात में ,खुद से बड़ी जुबान

           जो पूछ लेें ,क्या बात है ,कुछ पा लिया है क्या
         मेरी नाक पर, झपट पड़ी, ये नकचढ़ी  जुबान

        आखिर गई ,वो रोशनी ,फिर रात चढ़ रही
           बहर-हाल ,कुछ यूं हुआ ,के गिर पड़ी जुबान!!
 












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devsharma2501

Dev Sharma

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