पिताजी सारा वह कष्ट उठा कर के खुशियाँ तेरे दामन भरता तेरे खुशियों के खातिर जो अपना जीवन अर्पण करता --------//-----------//--------- जीता है अपना बालपन तेरे किलकारी के स्वर में अपने पुरुषार्थ को पाता है बच्चों के स्वस्थ आत्मबल में --------//-----------//--------- जीवन अपना खुद के लिए नही अपने संतान की रक्षा में खुद तपता है भानु बन कर तेरे मंगल की इक्षा में --------//-----------//--------- पिता नही उन्हें देव कहो जो तेरे लिए जीता मरता तुझको अमृत का घट देकर सारा विषपान स्वयं करता --------//-----------//--------- कब देखा है तुमने अंशु कब सुना है उनका दर्द भला जग का वह बोझ उठा कर भी ऋषियों सा है चुपचाप चला --------//-----------//--------- तेरी रचना में छिपा है वो परमपिता ब्रह्मा बन कर विष्णु की तरह पालन करता स्वयं को वो भूखा रख कर --------//-----------//--------- उनकी अंगुली को थाम के हीं तुम ने तो है चलना सीखा उनके कंधे पर बैठ के तो सारा दुनियां तुमने देखा --------//-----------//--------- उनका सम्मान न करे जो जग तो क्या यह दुनियाँ चल सकता न कोई जग में आएगा न कोई फिर से पल सकता #शब्दांश# #LoveYouDad