"नजरे चुरा के हमसे मुंह फेर के चले गए। "हम तो बेसब्री से बेइंतहा इंतजार में खड़े थे। "इतना भी क्या मशरूफ हो यारों में, 'की माशूका को ठेंगा दिखा कर चले गए, 'आने दो ऊंट पहाड़ के नीचे, 'फिर हम भी दिखाएंगे अपने जलवे, 'जब प्रेम की बंसी बजाओगे, 'फिर बिन सुरताल के रह जाओगे, 'जब सुनोगे प्रेम भरे गीत तो हम तुम्हारे जेहन में मंडराएंगे, 'जब हीरो खुद को समझोगे तो हीरोइन कहां से लाओगे तो हम याद खुद ब खुद आ ही जाएंगे। "जब आएगा वैलेंटाइन डे, 'तब क्या यारों के साथ मना आओगे, 'फिर तुम खाक छानते रह जाओगे, 'बड़े इतराते हो बड़े फड़फड़ाते हो, 'इश्क इश्क करते हो 'आग के दरिया में क्यों ना गोते लगा के आते हो, 'चिट भी अपनी पट अपनी, 'हर चीज में ही अपने को शहंशाह बनाते हो,, 'हरकतें गुलामों जैसी, शहंशाह के तो एक भी गुण में नजर नहीं आते हो,,,, यह फनी पोयम है मस्ती मजाक कुछ एहसास है इसका संबंध हास्य रस से है। पूरी कविता कैप्शन में "नजरे चुरा के हमसे मुंह फेर के चले गए। "हम तो बेसब्री से बेइंतहा इंतजार में खड़े थे। "इतना भी क्या मशरूफ हो यारों में, 'की माशूका को ठेंगा दिखा कर चले गए,