कल तक मेरी सरहदों में जो था वो शख्स आज उस पार है जिसकी मसनद भी अब तक यहाँ गर्म है जाने क्यों हमसे ही वो बेज़ार है या इलाही गर सज़ा मेरे गुनाहों की वाजिब थी तो किसी और शक़्ल में देता जिसे कभी हमसे प्यार न हुआ जाने क्यों आज तक उससे हमको प्यार है 20/8/20