जब मर्म -ए- बराय़का तेरे गलियों से होकर मेरे आंगन आई, दीदा-ए- तर होकर भी मेरी लबों पर मुस्कान आई, तुम होते गये सनम गैर की मुझे रुख्शत कर अपने दिल से, वफाई ऐसे थी तुम संग तेरे दिले बारात और मेरी मुअय्यन मैयत दोनों साथ आई।। ©Abhay Pandey दिले अल्फ़ाज