गये फ़ीकी ज़िंदगी जी के जो रईस होने की फ़िराक़ में थे, सुना है जी भर जीने को वो मुनासिब वक़्त की ताक़ में थे! हज़ारों मर्तबा फ़ितूर ए दिल ने उनसे शरारती फ़रमाइशें की, बेचारे शरीफ बने रहे क्योंकि वो नका़ब ए अख़लाक़ में थे! संजीदा तो वो तब हुए जब बात पैसों की लेनदेन पे पहुँची, वरना इश्क़ ओ दीन के तमाम दावे तो बस यूँ ही मज़ाक़ में थे! सिर्फ़ आंखें ही उनकी गहरे अंधेरे में डूबी नज़र आई हमें, वैसे फ़लक़ से ज़्यादा उजले सितारे तो उनकी पोशाक़ में थे! अख़लाक़ - good behavior ©Shubhro K #satire