आहिस्ता आहिस्ता, रौशनी बुझ गयी अंधेरे की फ़िज़ा भी छा गई आस का टिमटिमाता हुआ एक दिया मुद्दतों आँधियों मे भी जलता रहा और लुटाता रहा, आहिस्ता आहिस्ता.. वक़्त की अंधेरी और संकरी रहो में रौशनी जगमगाती रही,दिल की वीरानियाँ.. यह दिया भी बुझ गया, आज किस मोड़ पर खो गयी है अंधेरे में रहगुज़र, आहिस्ता आहिस्ता.. कैसे जारी रखे कोई अपना सफ़र मेरे क़दमों तले निकलती हुई ज़िन्दगी की डगर, आहिस्ता आहिस्ता.. #रातकाअफ़साना #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi #सुचितपाण्डेय #suchitapandey आहिस्ता आहिस्ता, रौशनी बुझ गयी अंधेरे की फ़िज़ा भी छा गई आस का टिमटिमाता हुआ एक दिया मुद्दतों आँधियों मे भी जलता रहा और लुटाता रहा, आहिस्ता आहिस्ता.. वक़्त की अंधेरी और संकरी रहो में