जाने कितना तरसता रहता है, रात भर बस ये तकता रहता है तूझे देखने को सदियों तड़प रहा तुझे देख, बढ़ता घटता रहता है तुझे उजालो का इश्क रास आया अंधेरों को यूँ ही सहता रहता है महबूब उसका फिरे किसी दूजी ओर महबूब के चककर काटता रहता है इस इश्क का क्या कोई असर नहीं, ज्वार भाटा कहीं और भी उठता रहता है Love of moon for the earth