अवसाद बढ़ रहा है रात के सन्नाटे में चीखते झिंगुर, और पंखे की घर्रघर्र-घर्रघर्र, न जाने क्यूँ मन बहुत व्याकुल है? तबियत भी ठीक है और मौसम भी हरा है, पर मूड न जाने क्यूँ उखड़ा-उखड़ा है? किसी की याद भी नहीं है, किसी की तलब भी नहीं है. पर न जाने क्यूँ अवसाद बढ़ रहा है? नींद नहीं आती है, करवट कितना बदलूँ? कोई अनहोनी न हो जाये कहीं, मन मेरा डर रहा है। #realfeelings