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आग लगी है, मेरी बस्ती में...तो बुझाने, वह क्यों जा

आग लगी है, मेरी बस्ती में...तो बुझाने, वह क्यों जाएगा..??
उस मोहल्ले में... कही उसका मकान... थोड़ी है..!!

वह हार मांगता है, मेरी...रोज मंदिरों में जाकर..
 समझाओ उसे कोई.. मंदिरो में... बसे भगवान थोड़ी है..!!

मैं भी मां के पैर दबा कर... जीत मांग लेता हूं अपनी...
मेरी मां भी भगवान है.... मेरे लिए... इंसान थोड़ी है...!!

और यह दोस्ती है ना... बुरे वक्त में भी... साथ रहना पड़ता है साहब...
जब तीखी लगी जिंदगी... बस तभी याद करो...यह मीठा पकवान थोड़ी है...!!

और वह शख्स ...जिसने पीठ पीछे... खंजर से वार किया है, आज...
वह भी जिगरी दोस्त.... है मेरा... शैतान थोड़ी है...!! वह हार मांगता है मेरी.... रोज मंदिरों में जाकर...
मैं पैर दबाता हूं... मां के.. रोज़ थका-हारा आकर..!!
आग लगी है, मेरी बस्ती में...तो बुझाने, वह क्यों जाएगा..??
उस मोहल्ले में... कही उसका मकान... थोड़ी है..!!

वह हार मांगता है, मेरी...रोज मंदिरों में जाकर..
 समझाओ उसे कोई.. मंदिरो में... बसे भगवान थोड़ी है..!!

मैं भी मां के पैर दबा कर... जीत मांग लेता हूं अपनी...
मेरी मां भी भगवान है.... मेरे लिए... इंसान थोड़ी है...!!

और यह दोस्ती है ना... बुरे वक्त में भी... साथ रहना पड़ता है साहब...
जब तीखी लगी जिंदगी... बस तभी याद करो...यह मीठा पकवान थोड़ी है...!!

और वह शख्स ...जिसने पीठ पीछे... खंजर से वार किया है, आज...
वह भी जिगरी दोस्त.... है मेरा... शैतान थोड़ी है...!! वह हार मांगता है मेरी.... रोज मंदिरों में जाकर...
मैं पैर दबाता हूं... मां के.. रोज़ थका-हारा आकर..!!