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इन्सान बिके तो कहीं तस्वीर बिकती, चन्द सिक्कों में

इन्सान बिके तो कहीं तस्वीर बिकती,
चन्द सिक्कों में अब जमीर बिकती।
 बिकने का चलन पुराना है क्या कहे,
रांझा बिके कहीं मजबूर हीर बिकती।
नया दौर होती हैं नई नई तमाम बातें,
लगे बोली खुलेआम तकदीर बिकती।
बाप बेटी को न्याय दिलाये तो कैसे,
मुंशी बिके कहीं लिखी तहरीर बिकती।
कहने को पाबंदी मगर यही सच रैना,
इस बस्ती में बेखोफ है पीर बिकती।
रैना

©Rajinder Raina बिकती
इन्सान बिके तो कहीं तस्वीर बिकती,
चन्द सिक्कों में अब जमीर बिकती।
 बिकने का चलन पुराना है क्या कहे,
रांझा बिके कहीं मजबूर हीर बिकती।
नया दौर होती हैं नई नई तमाम बातें,
लगे बोली खुलेआम तकदीर बिकती।
बाप बेटी को न्याय दिलाये तो कैसे,
मुंशी बिके कहीं लिखी तहरीर बिकती।
कहने को पाबंदी मगर यही सच रैना,
इस बस्ती में बेखोफ है पीर बिकती।
रैना

©Rajinder Raina बिकती