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मानव होकर, मानव का भक्षक कहता खुद को, धर्म का रक्ष

मानव होकर, मानव का भक्षक
कहता खुद को, धर्म का रक्षक
हाय इंसान तेरी ये कैसी लाचारी
हाय इंसान कैसी ये तेरी लाचारी।

जितने भी जीव है,इस चराचर मे
खड़े हुऐ है एक दूजे के बराबर मे
फिर क्रूरता क्यों बन रही महामारी 
हाय इंसान कैसी ये तेरी लाचारी।

जो धर्म, भेद करे अन्य धर्मों से
हिंसा को जोड़े नैतिक कर्मो से
जिसमे नर की दासी घोषित है नारी
हाय इंसान कैसी ये तेरी लाचारी।

इंसान,पशु,वृक्ष सबको एक ही रचता
क्यों नहीं इंसान यह बात है समझता।
सच को झुठला कर, बन गया अहंकारी
हाय इंसान कैसी ये तेरी लाचारी।

©Kamlesh Kandpal
  #Lachari