Nojoto: Largest Storytelling Platform

शत्रु (दोहे) शत्रु छिपे आस्तीन में, हो कैसे पहचान

शत्रु (दोहे)

शत्रु छिपे आस्तीन में, हो कैसे पहचान।
मुख पर मीठे हैं बने, बनते ये अनजान।।

पीछे से चालें चलें, रचे नये षड्यंत्र।
कैसे इसको मात दें, सोचें कोई तंत्र।।

जीवन ये शतरंज है, शत्रु निभाता रीत।
कोशिश उसकी ये रहे, कैसे पाऊँ जीत।।

घुस आते कुछ देश में, करते फिर उत्पात।
फर्ज वे शत्रु का निभा, देते हैं आघात।।

सैनिक अपने वीर हैं, खूब चटाते धूल।
शत्रु सभी फिर भागते, जो है उन्हें कुबूल।।

शत्रु दिखे जब सामने, हो सकती तब जीत।
अपनों में जो हैं घुसे, क्या कर पाएँ मीत।।
..........................................................
देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit 
  #शत्रु #nojotohindipoetry #दोहे

# Amit kumar shiva jha... Pavan Thakur खामोशी और दस्तक Roshni queen  Amar'Arman' Baghauli hardoi UP Manisha Keshav Bhardwaj Only Budana Praveen Storyteller कवि संतोष बड़कुर  Lalit Saxena R K Mishra " सूर्य " Barkha Saurav life Kajol Pushap