Nojoto: Largest Storytelling Platform

(अछूत जूता) ---------------- मैं जूता हूँ, मैं अछू

(अछूत जूता)
----------------
मैं जूता हूँ,
मैं अछूत हूँ,
लोग मेरी परवाह नहीं करते,
मेरा मंदिर,मस्जिद में जाना वर्जित है,
जन्म से तो मैं जूता ही रहता हूँ
पर लोग मुझे पहली दफा बाँटते हैं
एक घर का ,एक बाहर का।

मैं कई रूपो,कई कीमतों में मिलता हूँ,
पर मेरे खुद की कोई कीमत नहीं,
मेरी कीमत पहनने वाले पर निर्भर है,
कम कीमत का भी अगर
साधू या धनवान के पैरों में होता हूँ तो
पूजा जाता हूँ,
कीमती होकर भी अगर 
सही पाँव में न आया तो
यातना सहता हूँ।

मेरा काम दीखता नहीं,
पर मैं सैनिको की तरह
घर के बहार डटा रहता हूँ
न जाने कब मालिक को जरुरत हो
धुप-पानी-कीचड़ सब सहता हूँ
पर मुझे क़द्र कभी नहीं मिलता
क्योंकि मैं अछूत हूँ
मुझे बनाने वाले अछूत हैं
उफ़ लोगो ने समाज बांटते बांटते
सामान को भी बाँट डाला।

मुझे भी जोड़े में रहना पसंद है,
दुःख होता है जब
लोग बेतरकिब हमें 
अलग थलग रखते है,
फिर भी मौन हो सब सह जाता हूँ।

इंसान का कद कितना भी ऊँचा हो
मेरे बिना उसे पूर्णता नहीं मिलता
फिर भी मैं
उपहार के तौर पर 
पेश नहीं किया जाता,
शुभ मुहूर्त में
सेवा से बर्खास्त कर दिया जाता हूं
या फिर नजरो से ओझल
किसी धुप्प अँधेरे कोने में 
समेट दिया जाता हूँ,
लोग हँसते नाचते गाते हैं
और मेरा दम घूँटता रहता है।

मैं घिस घिस कर
पीस पीस कर 
मालिक की सेवा करता हूँ
उनके जरा सा पोछ देने से
मारे ख़ुशी के चमक उठता हूँ
दोगुने जोश से फिर सेवा देता हूँ।
पर मेरा नसीब?
मेरा न्याय?
मेरा क़द्र?
मेरी पहचान?
बस जूता हूँ
मुझे एक अछूत ने बनाया
और मैं अछूत हूँ।

दिलीप कुमार खाँ "अनपढ़" #अछूत जूता
(अछूत जूता)
----------------
मैं जूता हूँ,
मैं अछूत हूँ,
लोग मेरी परवाह नहीं करते,
मेरा मंदिर,मस्जिद में जाना वर्जित है,
जन्म से तो मैं जूता ही रहता हूँ
पर लोग मुझे पहली दफा बाँटते हैं
एक घर का ,एक बाहर का।

मैं कई रूपो,कई कीमतों में मिलता हूँ,
पर मेरे खुद की कोई कीमत नहीं,
मेरी कीमत पहनने वाले पर निर्भर है,
कम कीमत का भी अगर
साधू या धनवान के पैरों में होता हूँ तो
पूजा जाता हूँ,
कीमती होकर भी अगर 
सही पाँव में न आया तो
यातना सहता हूँ।

मेरा काम दीखता नहीं,
पर मैं सैनिको की तरह
घर के बहार डटा रहता हूँ
न जाने कब मालिक को जरुरत हो
धुप-पानी-कीचड़ सब सहता हूँ
पर मुझे क़द्र कभी नहीं मिलता
क्योंकि मैं अछूत हूँ
मुझे बनाने वाले अछूत हैं
उफ़ लोगो ने समाज बांटते बांटते
सामान को भी बाँट डाला।

मुझे भी जोड़े में रहना पसंद है,
दुःख होता है जब
लोग बेतरकिब हमें 
अलग थलग रखते है,
फिर भी मौन हो सब सह जाता हूँ।

इंसान का कद कितना भी ऊँचा हो
मेरे बिना उसे पूर्णता नहीं मिलता
फिर भी मैं
उपहार के तौर पर 
पेश नहीं किया जाता,
शुभ मुहूर्त में
सेवा से बर्खास्त कर दिया जाता हूं
या फिर नजरो से ओझल
किसी धुप्प अँधेरे कोने में 
समेट दिया जाता हूँ,
लोग हँसते नाचते गाते हैं
और मेरा दम घूँटता रहता है।

मैं घिस घिस कर
पीस पीस कर 
मालिक की सेवा करता हूँ
उनके जरा सा पोछ देने से
मारे ख़ुशी के चमक उठता हूँ
दोगुने जोश से फिर सेवा देता हूँ।
पर मेरा नसीब?
मेरा न्याय?
मेरा क़द्र?
मेरी पहचान?
बस जूता हूँ
मुझे एक अछूत ने बनाया
और मैं अछूत हूँ।

दिलीप कुमार खाँ "अनपढ़" #अछूत जूता