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देर रात बैठें कुछ ख्वाब बून रही हूँ मैं कुछ टुकड़

देर  रात बैठें कुछ ख्वाब बून रही हूँ मैं
 कुछ टुकड़े जिंदगी के जोड़ जिंदगी को चुन रही हूँ 
मैं क्या खोया क्या पाया क्या हिसाब लगाऊँ
खुस हूँ ख़ुद पे ख़ुद से छीन रही हूँ मैं
किनारे बैठें लोग  मशवरा देते हैं
 एक कशती अकेले लिए तूफ़ान से लड़ रही हूँ मैं
कितनों को अजीज हूँ मैं कितना खुशनसीब हूँ मैं
अपनी कहानी की क़िरदार गढ़ रही हूँ मैं
टूट कर भी टूटने नहीं देती लकीरों में बसी सपनों को पढ़ रही हूँ मैं #anshi
देर  रात बैठें कुछ ख्वाब बून रही हूँ मैं
 कुछ टुकड़े जिंदगी के जोड़ जिंदगी को चुन रही हूँ 
मैं क्या खोया क्या पाया क्या हिसाब लगाऊँ
खुस हूँ ख़ुद पे ख़ुद से छीन रही हूँ मैं
किनारे बैठें लोग  मशवरा देते हैं
 एक कशती अकेले लिए तूफ़ान से लड़ रही हूँ मैं
कितनों को अजीज हूँ मैं कितना खुशनसीब हूँ मैं
अपनी कहानी की क़िरदार गढ़ रही हूँ मैं
टूट कर भी टूटने नहीं देती लकीरों में बसी सपनों को पढ़ रही हूँ मैं #anshi