इस जिन्दगी की बस एक ही कहानी है, कँही ठहरा तो कँही बहता हुआ पानी है, न जाने कोई राज़ बहते हुये अश्कों का, कभी ख़ुशी तो कभी गम की निशानी है, कभी वक़्त मिले चले आना किसी रोज़, तुमसे बातें कुछ सुननी है’ कुछ सुनानी है, अपना होके भी वो कभी अपना न हुआ, जिसे कहते थे सब कि वो मेरी दीवानी है, चंद सिक्कों के वास्ते गँवाये सुकूँ सारे, इंसानी फितरत की ये कैसी नादानी है, तवायफ की तरह रंग बदलती है वक़्त पे, मतलबी सियासत की ये आदत पुरानी है. ~मनोज सिंह”मन”