पवन आरम्भ सतगुर मत वेला।। शब्द गुरु सुरत धुन्न चेला।। अकथ कथा ले रहो निराला।। नानक जुग-2 गुर गोपाला।। अर्थ:- नाक द्वारा जहाँ से हमे पवन आ रही है यानी जहां से हमे श्वास आ रहा है हमने वहां पर सच्चे गुर यानी योगिक कला वाली मत लेकर उस समय अपने दोनों नेत्रों का ध्यान नाक के उस भाग पर केंद्रित करना होता है सच्चे साधु के मुख से बोले गए शब्दों यानी दिशा निर्देश रूपी शब्दो रूपी धुन्न को अपना गुरु मान कर नेत्रों में बैठे मन को सुरती यानी ध्यान एकदृष्ट करना है व उस दिशा निर्देश का चेला बनना है।। उस इशारे मात्र दिशा निर्देश रूपी अकथ कथा को मन मे धारण करके त्रै-गुणी माया से यानी रजो-तमो-स्तो से निराला होना है किसके द्वारा हे नानक जो जुगों से एक ही गुर एकदृष्ट करने की योगिक कला जो नेत्रों को नाक पर देखने की कला चली आ रही है उस परम निराकार प्रकाश गोपाल से जुड़ने की जो सदा ही रहने वाले हैं।। ©Biikrmjet Sing #गुर