मैं प्रबन्धक हूँ पर लगता है बंधक हूँ कोरोना का कहर है जॉब खोने का डर है जॉब करना जरुरी है फोन उठाना मजबूरी है 'मैं प्रबंधक हूँ' कहने में सम्मान है पर एक-एक फोन विश समान है एक दिन फोन स्विच ऑफ करके चैन से सोना चाहता हूँ बस कोने में जी भर के रोना चाहता हूँ बेड है नहीं पर मैनेज कराता हूँ कुछ इस तरह पसीना बहता हूँ 300-400 फोन उठाने लगा हूँ प्रबन्धक के साथ दायित्व बी.पी.ओ का भी निभाने लगा हूँ जल्दी जाता हूँ देर से आता हूँ कभी-कभी आधी रात भी बुला लिया जाता हूँ कुछ इस तरह 15-20 घण्टे की ड्यूटी निभाता हूँ कभी यदि फोन स्किप कर जाता है फोन न उठाने का इल्ज़ाम लग जाता है जूनियर कहते हैं आप फोन उठाते नहीं करना क्या है, ये भी बताते नहीं परिजनों से भिड़ता हूँ डॉक्टरों से लड़ता हूँ क्रोध दबाता हूँ, प्रेम जताता हूँ भी.आई.पी के आते ही दण्डवत सेवा में तत्पर हो जाता हूं अपनी कहता नहीं पर सबकी सुनता हूँ हर रोज नई आशा की चादर बुनता हूँ ये सब बस बहाने हैं ऐसा घरवालों के ताने हैं विषपान कर, मुस्कुराता एक पौधा हूँ प्रबंधक नहीं मैं भी कोरोना योद्धा हूँ। ©Lokriti Gupta #coronaworrier #MessageToTheWorld