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कुछ तो हवा भी सर्द थी _कुछ था तिरा ख़याल भी दिल क

कुछ तो हवा भी सर्द थी _कुछ था तिरा ख़याल भी 
दिल को ख़ुशी के साथ साथ _होता रहा मलाल भी 
 
बात वो आधी रात की_ रात वो पूरे चाँद की 
चाँद भी ऐन चैत का _उस पे तिरा जमाल भी 

सब से नज़र बचा के वो _मुझ को कुछ ऐसे देखता 
एक दफ़ा तो रुक गई _गर्दिश-ए-माह-ओ-साल भी 
 
दिल तो चमक सकेगा क्या _फिर भी तराश के देख लें 
शीशा-गिरान-ए-शहर के_ हाथ का ये कमाल भी 

उस को न पा सके थे जब _दिल का अजीब हाल था 
अब जो पलट के देखिए_ बात थी कुछ मुहाल भी 

मेरी तलब था एक शख़्स__ वो जो नहीं मिला तो फिर 
हाथ दुआ से यूँ गिरा______ भूल गया सवाल भी 

उस की सुख़न-तराज़ियाँ ___मेरे लिए भी ढाल थीं 
उस की हँसी में छुप गया___ अपने ग़मों का हाल भी 

शाम की ना-समझ हवा____ पूछ रही है इक पता 
मौज-ए-हवा-ए-कू-ए-यार कुछ तो मिरा ख़याल भी ##परवीन शाकिर 

#steps
कुछ तो हवा भी सर्द थी _कुछ था तिरा ख़याल भी 
दिल को ख़ुशी के साथ साथ _होता रहा मलाल भी 
 
बात वो आधी रात की_ रात वो पूरे चाँद की 
चाँद भी ऐन चैत का _उस पे तिरा जमाल भी 

सब से नज़र बचा के वो _मुझ को कुछ ऐसे देखता 
एक दफ़ा तो रुक गई _गर्दिश-ए-माह-ओ-साल भी 
 
दिल तो चमक सकेगा क्या _फिर भी तराश के देख लें 
शीशा-गिरान-ए-शहर के_ हाथ का ये कमाल भी 

उस को न पा सके थे जब _दिल का अजीब हाल था 
अब जो पलट के देखिए_ बात थी कुछ मुहाल भी 

मेरी तलब था एक शख़्स__ वो जो नहीं मिला तो फिर 
हाथ दुआ से यूँ गिरा______ भूल गया सवाल भी 

उस की सुख़न-तराज़ियाँ ___मेरे लिए भी ढाल थीं 
उस की हँसी में छुप गया___ अपने ग़मों का हाल भी 

शाम की ना-समझ हवा____ पूछ रही है इक पता 
मौज-ए-हवा-ए-कू-ए-यार कुछ तो मिरा ख़याल भी ##परवीन शाकिर 

#steps
dkbhati8216

Dk bhati

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