बचपन में सोचा करता था, जल्द से जल्द बड़ा हो जाऊं, अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊं, बड़ा होकर सारे ख़र्चों को अपने कंधों पर उठाऊं, लो बड़ा हो गया, अपने पैरों पर भी खड़ा हो गया, सारे ख़र्चों को अपने कंधों पर भी उठा रहा हूँ, पर कोई आकर मुझे ये बताए, ये दिल क्यों भीतर ही भीतर टूट रहा है, मुझे लगता है कुछ तो ऐसा है जो जिंदगी के पलों में मेरे हाथ से छूट रहा है। #NojotoQuote क्या छूट रहा?