चलो सुहाने दौर पुराने आये तो बगिया में आम फिरसे बौराये तो पगडंडी और मेड़ो वाले रस्ते पर खेतों में गेहूं की बाली लहराये तो राम धनी काका ने नाथ लगायी है बैलों की जोड़ी को फिर दौड़ाये तो रामबहादुर फगूनी संग इदरिस भाई सुर्ती मलकर एक दूजे को खिलाये तो नथूनों में भर सोंधी खुशबू मिट्टी की घुमड़ घुमड़ बादल पानी बरसाये तो शाम ढले चौपाल लगी खलिहाने में बैठ बिशेसर बिरहा कोई सुनाये तो लौट शहर से गांव में फिर आये हम यादों को संजय कैसे कोई भुलाये तो ©संजय श्रीवास्तव #parent