कहाँ क्षितिज के कहीं कुछ भी पार होता है। नज़र को धोखा मगर बार बार होता है। हमें यकीन जहाँ होता है वहीं अक्सर , बसन ये आबरू का तार तार होता है। गुलाब को भी सजग हो के चूमिए लब से , न छिल ये जाए कहीं ख़ार ख़ार होता है। ….. सतीश मापतपुरी ©Satish Mapatpuri क्षितिज