लबों पे उसके कभी बददुआ नहीं होती बस इक माँ है जो कभी ख़फा नहीं होती इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आंसू मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है ऐ अँधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया माँ ने आँखें खोल दी घर में उजाला हो गया अभी ज़िंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है ये ऐसा कर्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता मैं जब तक घर ना लौटूं मेरी माँ सजदे में रहती है माँ के आगे यूँ कभी खुलकर मत रोना जहाँ बुनियाद हो वहाँ इतनी नमी अच्छी नहीं होती ! Maaaaaaaaaaaaaa