है हासिल इशरत मुझे कोई शिक़वा नहीं मगर, ज़रा नाज़ुक ये शीशा-दिल है ऐ ख़ालिक़-ए-शीशागर اا ہے حاصل عشرت مجھے کوئی شکوہ نہیں مگر، ذرہ نازک یہ شیشہ دل ہے اۓ خالقِ شیشہگر اا ख़ालिक-ए-शीशागर - दिल बनाने वाले ख़ुदा _Word_Collab_Challenge_ Collab करें मेरे साथ 👉 Urdu_Hindi Poetry आज का लफ्ज़ है "इशरत" अब पहले की तरह एक विजेता नहीं बल्कि 3 विजेता चुना जाएगा,, जो सबसे पहला विजेता होगा उनको testimonial दिया जाएगा ! और दूसरे और तीसरे नंबर वाले विजेता को 'हाइलाइट' किया जाएगा।