नज़रे मिलाते हुए,कदम बढ़ाते हुए कितनी दूर चले जाते है लोग,हाथ हिलाते हुए बनकर रह गया वो शख्स जैसे एक तारा दुआये पूरी कर गया ख़ुद टूट जाते हुए बहुत उलझन है उसे अपनी बात कहने में होंठ कापते ही नही सच बताते हुए कोई मेहनत से आधा पेट खाकर सोया कोई अमीर हो गया झोली फैलाते हुए अब सब्र का इतना इम्तेहां भी न लो जान कही मैं रूठ न जाऊ तुम्हे मनाते हुए -(क्षत्रियंकेश) तारा!