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पेड लगाओ धरती बचाओ जिंदगी जीना कोई पेड से सिखे,

पेड लगाओ धरती बचाओ 

जिंदगी जीना कोई पेड से सिखे, 
जिन लोगों की वजह से टुटता हैं,
फिर भी उनको छाव देता हैं। 
बार बार काटकर 
गिराते हैं लोग उसे, 
लेकिन एक नई उम्मीद के साथ, 
वह फिरसे उगता है। 
पेड खुद धूप सहकर, 
औरों को अपनी छाव मैं रखता है, 
और यह इंसान चंद फायदे के लिए,
बेरहमीसे इन पेड़ों को काटता है। 
जब बढता हैं प्रदुषण, 
तब हमे सबसे पहले, 
पेड ही याद आता है।
क्यू काटते है हम पेड, 
यह तब समझमे आता है। 
इसलिए बाद में पछतावा न हो, 
पेड लगाओ पेड बचाओ,
यही एक मात्र जीवित रहने का उपाय हैं।

©Mrunalini Mandlik save tree and save our life.
पेड लगाओ धरती बचाओ 

जिंदगी जीना कोई पेड से सिखे, 
जिन लोगों की वजह से टुटता हैं,
फिर भी उनको छाव देता हैं। 
बार बार काटकर 
गिराते हैं लोग उसे, 
लेकिन एक नई उम्मीद के साथ, 
वह फिरसे उगता है। 
पेड खुद धूप सहकर, 
औरों को अपनी छाव मैं रखता है, 
और यह इंसान चंद फायदे के लिए,
बेरहमीसे इन पेड़ों को काटता है। 
जब बढता हैं प्रदुषण, 
तब हमे सबसे पहले, 
पेड ही याद आता है।
क्यू काटते है हम पेड, 
यह तब समझमे आता है। 
इसलिए बाद में पछतावा न हो, 
पेड लगाओ पेड बचाओ,
यही एक मात्र जीवित रहने का उपाय हैं।

©Mrunalini Mandlik save tree and save our life.