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हाय! हर पल हो रही इस पीर का क्या अंत नहीं? क्रूर न

हाय! हर पल हो रही इस पीर का क्या अंत नहीं?
क्रूर नज़रों से टटोलती नज़र का क्या अंत नहीं?
नर नहीं है वह नराधम है पिशाच जीवंत नहीं।
कर सके जो भर्त्सना न कुंठित कुत्सित कृत्य की।
          -शैलेन्द्र

©HINDI SAHITYA SAGAR
  #lonely 
हाय! हर पल हो रही इस पीर का क्या अंत नहीं?
क्रूर नज़रों से टटोलती नज़र का क्या अंत नहीं?
नर नहीं है वह नराधम है पिशाच जीवंत नहीं।
कर सके जो भर्त्सना न कुंठित कुत्सित कृत्य की।
                   -शैलेन्द्र

#lonely हाय! हर पल हो रही इस पीर का क्या अंत नहीं? क्रूर नज़रों से टटोलती नज़र का क्या अंत नहीं? नर नहीं है वह नराधम है पिशाच जीवंत नहीं। कर सके जो भर्त्सना न कुंठित कुत्सित कृत्य की। -शैलेन्द्र #कविता

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