बेख़ौफ़ सा ढूंढ़ता हूं मैं ख़ुद के नामों निशा उलझनों से घिरा है ये सारा जहाँ बेफ़िक्र सा चलता हूँ मैं राहों पर अक़्सर ढूंढने अपनें नामों निशा है कोई अपना या बेफ़िक्र मुझसे सारा जहाँ रूठी ही क्यूँ रहती है मेरी रातें अक़्सर ढूँढता फिरता हूँ मैं ख़ुद का सारा जहाँ