ह्रदय में तुम, या यूं कह दूं की हृदय तुम्ही हो कभी जो न प्रकट कर पाईं भाव सम्मुख तुम्हारे फिर भी समझ लेना कि आरंभ में भी तुम और अंत में भी तुम्ही हो । ©seema patidar आरंभ, अन्त ,मेरे अहसास