कबी तू भी हाथ उठा जिमेदारी से रिस्ते निभाना बस मेरा ही फ़र्ज है क्या बडे बेमतलब के अहसान जताता है मेरे सर पे तेरा कोई कर्ज है कया मै प्यार जताता हू तू रूठा ही रहता है तुझे कोई दिमागी मर्ज है कया मै रोज जाता हू दुआ में तूझे मागने मेरे मसजिद में जाने से कोई हरज है क्या मेरे मसजिद में जाने से Lakshmi singh