फूल समझ के तोड़ ना देना , मै दृ़संकल्प की धारी हूं । मै ही दुर्गा मै ही काली , समझ ना मै सिर्फ नारी हूं। मै धरती की सुंदर काया, मै ही दुष्ट संघारी हूं। चंचल नयनों में नीर लिए , मै सबला व्रत धारी हूं । कंठ सजल संगीत लिए , मै ही रण में हुंकारी हूं । मेरे पद जो पड़े , वहां फूल खिले , मै बसंत ऋतु की अवतारी हूं। फूल समझ के तोड़ ना देना, मै दृ़संकल्प की धारी हूं। #नारी,,,,