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यूँ तो भीड़ है ज़माने में बहुत, पर हर एक की जनाब

यूँ तो  भीड़ है ज़माने में बहुत, पर हर एक की जनाब यहाँ कहानी रहती है अधूरी! 
हैं सभी की आँखों में ख़्वाब हसीन,किसी को जुनून तो किसी को हुए ये मजबूरी है!

पर न तोड़ना नाता ख्वाबों से,बनाने को हकीकत इन्हें तुम करना अपनी कोशिश पूरी!
खा धक्के हार के न होना उदास, बनने को धारा पर्वतों से टकराना भी होता है ज़रूरी!

हो चाहे कितने ही भयावह गझिन अरण्य,हो उत्तेजित न हुआ किसी का सफ़र मुकम्मल,
बनने को मूरत पूज्यनीय खाकर असंख्य चोट,पाषाण सा अविचल रहना है बहुत जरूरी!

बेशक ही उलझा हो मांझा ख्वाबों का ,पर न तोड़ना जनाब कभी भी तुम उम्मीद डोरी!
थामे रखना सदा पतंग आत्मविश्वास की ,करना कोशिश चींटी सी निरंतर थोड़ी थोड़ी!

सारा दिन जलाता है यहां स्वयं को ये दिनकर, तब जाकर होती है कहीं ये शाम सिंदूरी!
यूँ भागने से नहीं मिलती मंजिलें यहाँ ,एक एक कदम संभालकर रखना होता है ज़रूरी!

रहते जो सदा  उत्तेजित ,चूक जाता है अक्सर लक्ष्य मंज़िल से भी उनकी रहती है दूरी!
पकड़ने को मीन लक्ष्य की , धारण कर धैर्य की माला है होना बगुले सा एकाग्र जरूरी!

बूँद बूँद से ही भरती है गागर, पर अगर फट जाए जो बादल सदा ही बहती सृष्टि पूरी!
वक्त से पहले न होता हासिल कुछ,थाम दामन  धैर्य का दृढ़ता से कर्म करना है ज़रूरी!

हो परिस्थितियाँ चाहे कितनी  विकट,निराशा के चाहे हो बादल कितने ही घनघोर घने,
हो जब तिमिर हताशा का भर हृदय में अथाह साहस निरंतर कोशिश करना है ज़रूरी!

हो चाहे कदम कदम भयावह गड्ढे विपदाओ के,पर याद रहे विजय का मंत्र मात्र है सबूरी!
ना मानी कभी हार जिसने हुए साकार स्वप्न उसके, बना है वही यहाँ सफ़लता की धुरी!

आसान  नहीं चढ़ना  शिखर सफ़लता का  सहज सहज पग धरना होता है बहुत ज़रूरी!
सिर्फ भागने से न मिलती यहाँ मंजिले"अजनबी",हृदय में धैर्य रखना भी है बहुत ज़रूरी!

©_जागृति@**शर्मा..."अजनबी"
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