फिर फिर लौट आतीं हैं पुरवाइयां , तुम्हारे विशाल पाषाण भवन के फौलादी दरवाजों, खिड़कियों से टकराकर , तुमने बंद कर लिये हैं,सारे झरोखे, जिनसे वायु का एक झोंका भी , नहीं घुस सके अनुमति के बिना, फिर तुम इसे वातानुकूलन कहते हो ! खड़े किये जा रहे हैं कंकरीट के जंगल, प्लास्टर से बने नकली पेड़,ग्रीन लाइट्स , नकली पेड़ों पर रखे जा रहे हैं जल पात्र युक्त कार्ड बोर्ड से बने नकली बर्ड हाउसेज, मैदानों में टर्फ बिछाई जा रही है, बालकनी में,बैठक में सजाई जा रही हैं नकली फूल पत्तियां , और इन कालोनियों को तुम ग्रीनसिटी कहते हो ! सिकुड़ता जा रहा है तुम्हारा हृदय, संकीर्ण होती जा रही हैं तुम्हारी रक्त नलिकाएं निरंतर, तुम्हारी धूर्तता लंपटता लोलुपता दंभ , तुम्हारे मस्तिष्क पर हावी होते जा रहे हैं लगातार, और तुम इसे ही एक सफल जीवन कहते हो ! #ग्रीन सिटी