नुमाइशों के लिए बाजार सजता है फरमाइश के मुताबिक सब मिलता है,,, अधूरी रह जाती है ख्वाहिशे जिनकी उन्हें कहाँ मुकम्मल खुदा मिलता है,,, रौनकें सजी हर तरफ,,, चकाचौंधनी से नहाया है शहर मेरा,,, क्यों तेरी गली में अंधेरा छाया,, मैहरूम रह गई वो झोपड़पट्टी,,, "जिन हाथों ने अक्सर बड़े-बड़े महलों को सजाया,,,