सरकारी खजाने से खैरात बांटने की होड़ शीर्षक से लिखे आलेख में भरत झुनझुनवाला ने कुछ प्रश्न खड़े किए हैं जिन पर हमारी नीति निर्धारक हो और राजनीति को को ध्यान देना चाहिए यह सही है कि सब्सिडी का मुख्य उद्देश्य जनता को किसी विशेष दिशा में बढ़ाने के लिए प्रेरित करता होगा होगा जैसे कृषि के क्षेत्र में सब्सिडी ने देश में उत्पन्न बढ़ाने में बॉडी भूमिका निभाई है लेकिन अनंत काल तक सब्सिडी देते रहना किसानों और कृषि के हित में नहीं है इसलिए 2006 में आई डी एम एस स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि कृषि योजनाओं को सब्सिडी बढ़ाने से बचा जाना चाहिए कृषि को आधुनिक सुविधाओं से सशक्त बनाने की आवश्यकता है इसी तरह डॉ आर एस कमेटी की 2019 में आई रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में सबसे अधिक बढ़ गया है इसको बढ़ाने में राजनीतिक कारण ज्यादा है इससे कृषि की समस्या का निवारण नहीं हो रहा इस रिपोर्ट के अनुसार 2017-18 में केंद्र और राज्य सरकार ने 2 पॉइंट 1400000 करोड रुपए कृषि सब्सिडी पर खर्च किए अगर हम इसे कर्ज माफ की धनराशि भी शामिल कर ले तो सब्सिडी की यह राशि 300000 करोड रुपए हो जाती है जो कि देश में कृषि के विकास के लिए दी गई राशि से लगभग 6 गुना ज्यादा है इसका अर्थ है कि देश में कृषि के विकास संबंधी आधारभूत ढांचा खड़ा करने पर बहुत कम खर्च हो रहा है इससे सब को ध्यान में रखकर कमेटी ने सिफारिश की है कि सभी तरह की सब्सिडी को अच्छा फिर से विधायक अपनाएं प्राकृतिक संसाधन पर कुशल उपयोग करना nw4 करना उत्पादन की गुणवत्ता बढ़ाना तथा पशु प्रदूषण सुरक्षा के उपाय को अपनाने के लिए प्रोत्साहित के रूप में परिवर्तित किया जाए ©Ek villain # सब्सिडी को तर्कसंगत बनाने की जरूरत #RepublicDay