एक अजनबी से कुछ इस तरह, मैं पगली दिल लगाए बैठी हूं। पता है एक दिन वो छोड़ जाएगा मुझे, बस यही सोचकर अभी से रूठी हूं। हां उस अजनबी से कुछ इस तरह, मैं पगली दिल लगाए बैठी हूं। हर रोज़ कहती हूं उससे मैं, कि रात में जल्दी सोती हूं, पर उसे क्या पता कि मैं सोने के बहाने उसकी याद में तड़पकर रोती हूं। क्यूं हर पल उसे पाकर भी, पल पल मैं उसे खोती हूं। एक अजनबी से कुछ इस तरह, मैं पगली दिल लगाए बैठी हूं। कोसों दूर है मेरा घर उसके घर से, पर दिल का आशियाना पास है, माना समझ है उसे मेरे इश्क़ की, पर मेरी तड़प का नहीं उसे एहसास है। दिन रात बहते हैं अश्क़ मेरे नैनों से, फिर भी इनमें इतनी क्यों प्यास है। मैं पल पल संग उसके जीती हूं, और हजा़र बार उस पर मरती हूं। पता है एक दिन जुदा होना है उसे मुझसे, पर फिर भी,उस अजनबी से, मैं पगली दिल लगाए बैठी हूं.... love moonu...