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मौन : संवाद (अनुशीर्षक में .....) कितना कुछ बदल रह

मौन : संवाद
(अनुशीर्षक में .....) कितना कुछ बदल रहा 
हम दोनों के मध्य तेजी से 
सच कहूं मुझे ख़ुद पता नहीं चलता कि
उदयांचल से चलकर
कब मेरा सूर्य ढलने को दूसरी छोर पर आ जाता अस्तांचाल तक....
क्षितिज सा रक्त तप्त जब तपने लगता है मेरा माथा तब
इन सब के मध्य एकांत रात्रि के साथ कुछ 
देर ठहरती हूं आकाश की ओर
मौन : संवाद
(अनुशीर्षक में .....) कितना कुछ बदल रहा 
हम दोनों के मध्य तेजी से 
सच कहूं मुझे ख़ुद पता नहीं चलता कि
उदयांचल से चलकर
कब मेरा सूर्य ढलने को दूसरी छोर पर आ जाता अस्तांचाल तक....
क्षितिज सा रक्त तप्त जब तपने लगता है मेरा माथा तब
इन सब के मध्य एकांत रात्रि के साथ कुछ 
देर ठहरती हूं आकाश की ओर