ना कोई रंग है ना कोई रूप है पर फिर भी कितना नशीला है चुपके से आंखों में आ जाता है और आँखे बंद हो जाती है, ओर जब निष्प्राण हो जाते है तो वह आ जाता है,,,उसके अस्तित्व को जरूरत नही किसी भी समान की वह तो हमे मदहोश कर देता है और अपने आगोश में ले लेता है सच कितना नशीला है वह,हा उसे नींद ही कहते है, बहुत नशीली रह्ती है नींद,,