आज भी जब स्टेशन पर ट्रेंन रूकी गाड़ी तो लेने आयी थी. पर मामा जो आपकी हंसी न दिखी कांधे पर मेरे हाथ न था आंख मेरी भर आयी थी.. घर पर जैसे मै पहूंची यूँ तो बाहर सब खड़े थे आ गयी मेरी रानी आगयी सुनने को कान तरसे थे आंख मेरी भर आयी थी.. चाय कि प्याली हाथ मे थी और घना सन्नाटा नाश्ते में क्या लाऊ..पोहे जलेबी और आलू बडा.. सुनी सुनी आई की आंखे देख आंख मेरी भर आयी थी.. घर के बाहर जब बाईक खडी देखी.. उस पर चडी धूल देख मन मे कचाश भर आई थी.. आप दोनों क्या चले गये..रो नहीं सकते थे तो हम जबरन हंस लेते हैं झूठा हंसते हंसते भी आंख मेरी भर आती है ©Yogita Harne आंख भर आती है..