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न जाने कितनी दफ़ा खाई है ठोकर बारिशों में भीगते हुए

न जाने कितनी दफ़ा खाई है ठोकर
बारिशों में भीगते हुए चला हूँ
सीखी है रास्तों से
किसी राह से अलग हो के
किसी और रास्ते से जुड़ना
बिताई है अनगिनत रातें
आवारगी में इनपर ही
कि
मुझे अब रास्ते पहचानते हैं आवारगी इतनी भी बुरी चीज़ नहीं बशर्ते मन से की जाये।
#रास्तेपहचानतेहैं #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi
न जाने कितनी दफ़ा खाई है ठोकर
बारिशों में भीगते हुए चला हूँ
सीखी है रास्तों से
किसी राह से अलग हो के
किसी और रास्ते से जुड़ना
बिताई है अनगिनत रातें
आवारगी में इनपर ही
कि
मुझे अब रास्ते पहचानते हैं आवारगी इतनी भी बुरी चीज़ नहीं बशर्ते मन से की जाये।
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