परिंदा चौराहे के चबूतरे पर, एक परिंदा तड़प रहा था भूख से ! दाना-पानी तो था ही, पर भूख आत्म-सम्मान कि रही होंगी. शायद उसका अपना ज़मीर, इजाजत नहीं दे रहा था की, जाके वह नसीब से मिले दाने चुने. खूद ही अपना हौसला बढाता वह फिर उठा, पंख फैलाए, ओर नई उड़ान लिए निकला. कुछ हासिल करने...! ✍ß°Krishna #selfrespect #parinda #bKrishna #missingthoughts_ #sunrays #hindiwriters