चल पक्की मौहब्बत करते हैं चलन का सबब रखते हैं, मिलते है मिलकर बिछड़ते हैं और एक रकीब भी रखते हैं। किरदार सारे वही होंगे पर नये रंग में, गांव की एक जूलियट और शहर का रांझा रखते हैं। इसमें हिन्दू मुस्लिम नहीं रखेंगे, धर्म से परे गुड्डे गुड्डीया रखते हैं, जो कुरितियां चुराऐ, रंग भेद को क्रैश करे एक एसा हैकर रखते हैं। जिन्न की जान तोते में नहीं किसी बावरी में रखते हैं, और मन्दिर में कोई शैख-ओ- वाईज़, मस्जिद में कोई काफिर मौलवी रखते हैं। किरदार सारे वही होंगे पर नये रंग में, एक गांव की जूलियट और किसी शहर का रांझा रखते हैं।