Ghazal आवारगी हवा है क्या तुझको ये पता है। तुफ़ाँ से बचना वर्ना तेरी ज़िन्दगी फ़ना है।। ऐ जाने जाना मुझसे तुम दूर हो के बैठो। तेरे हुस्न का ये जलवा न जाने क्या बला है।, मेरी ये बे बसी का उड़ाते हो क्यों मज़ाक़। आतुझको मैं बताऊं ये ज़ख़्म क्यों हरा है। इज़तराबी हाल मुझसे क्या पूछते हो ज़ालिम। फुरकत ने तेरी मुझको बस रंजो ग़म दिया है।। शमशाद जीना मुश्किल अब हो गया है मेरा। नफरत की आग लेकर हर शख़्स जा बजा है।। #गज़ल_शमशाद_मिल्किवी आप सब कि खिदमत हाजिर है