गुजर गए वो दिन कॉलेज के देखते - देखते हंसी - ठिठोली के वो सारे पल देखते - देखते न कोई बंदिश, न बोझ था जिम्मेदारी का खुद से बेखबर वो मौसम था खुमारी का वो दोस्तों के साथ बैठ घंटों बतियाना कभी किसी क्लास में उंघते रह जाना न फिकर भविष्य की, न अतीत की उलझन थी मन में आनंद लिए हर घड़ी मनभावन सावन थी आया अब ये पल कैसा देखते - देखते बेफिक्री के वो दिन बने फ़िक्र के देखते -देखते _ ऋतिका सिंह सूर्यवंशी देखते देखते