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गुजर गए वो दिन कॉलेज के देखते - देखते हंसी - ठिठोल

गुजर गए वो दिन कॉलेज के देखते - देखते
हंसी - ठिठोली के वो सारे पल देखते - देखते
न कोई बंदिश, न बोझ था जिम्मेदारी का
खुद से बेखबर वो मौसम था खुमारी का
वो दोस्तों के साथ बैठ घंटों बतियाना
कभी किसी क्लास में उंघते रह जाना
न फिकर भविष्य की, न अतीत की उलझन थी
मन में आनंद लिए हर घड़ी मनभावन सावन थी
आया अब ये पल कैसा देखते - देखते
बेफिक्री के वो दिन बने फ़िक्र के देखते -देखते

_ ऋतिका सिंह सूर्यवंशी देखते देखते
गुजर गए वो दिन कॉलेज के देखते - देखते
हंसी - ठिठोली के वो सारे पल देखते - देखते
न कोई बंदिश, न बोझ था जिम्मेदारी का
खुद से बेखबर वो मौसम था खुमारी का
वो दोस्तों के साथ बैठ घंटों बतियाना
कभी किसी क्लास में उंघते रह जाना
न फिकर भविष्य की, न अतीत की उलझन थी
मन में आनंद लिए हर घड़ी मनभावन सावन थी
आया अब ये पल कैसा देखते - देखते
बेफिक्री के वो दिन बने फ़िक्र के देखते -देखते

_ ऋतिका सिंह सूर्यवंशी देखते देखते
ritikasingh6890

Ritika Singh

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