छाया ***** जब ईजाद ना हुआ था आईना उस वक्त भी वजूद का एक छाप हमेशा रहा इंसानों के साथ भले उसमें निखार ना था पूर्ण प्रतिबिंबन की क्षमता ना थी पर मजबूती से साथ रहा वो हमेशा शायद ये कहने को कि खुद को अकेला ना समझो इंसान के बुरे और सद्कर्म का वो सदियों से बनता रहा साक्षी इंसान के हर कृत को दुहराता हुआ पाप पुण्य की चिंता से दूर प्रतिरोध और वंचना से दूर अपनी अंध काया और प्राणहीन स्वरूप के साथ अंधेरों से द्वंद करता छाया और उपछाया बन टिका रहा इंसानों के साथ इंसान बढ़ता रहा अंधेरे से उजाले की ओर ये निखरा,प्रसन्नचित साथ चलता रहा फिर इन्ही इंसानों ने मिटा दिया इसका वजूद जब खुद को समेट लिया धूप स्याह अंधेरे सोच के कमरों में आज भी ये छाया रोशनी में दिख अपने वजूद का एहसास दिलाती है शायद कहना चाहती है मैं मिटा नाही आज भी जिंदा हूँ बस मुझे रोशनी का सहारा तो दो दिलीप कुमार खाँ""अनपढ़" #Silence #छाया #प्रतिबिम्ब