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टूटा है दिल लेकिन एक हैरत भी है, वो निकली बेवफा बड़

टूटा है दिल लेकिन एक हैरत भी है,
वो निकली बेवफा बड़ी बेगैरत भी है..!

उम्मीद थी जिससे ज़िन्दगी भर साथ निभाने की,
वो छोड़ गई तन्हा महफ़िल थमा गई मयख़ाने की..!

डूबे रहते हैं बस इसी सोच में,
क्या नज़र लगी ज़माने की..!

आँखें थक गई हैं राह उसकी देख देख,
न बची कोई आस उसके आने की..!

हद से भी गुज़र गए जिसकी ख़ातिर,
वो निकली न जाने कैसे घराने की..!

हार कर बैठे हैं खुद दिल अपना,
कभी शर्त लगी थी नफ़रत को हराने की..!

उतार दिए गए पँखे भी सारे घर के इस ख़्याल से,
कहीं ख़ुदकुशी न कर बैठे पागल दीवाने सी..!

©SHIVA KANT(Shayar)
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