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इबादतों में तुमको ही माँगाती रही रब से, मैं इबादतो

 इबादतों में तुमको ही माँगाती रही रब से,
मैं इबादतों की तरह तमको मनाती गयी!
इबादतें बेकाम रही जो बेनाम रही तुमसे,
मैं तेरे नाम को अब इबादत समझने लगी!
महफ़िल तो सज़ी रही हमारी उलफ़त से,
जो नज़्म-ए-वस्ल हमारी पढ़नी शुरू हुई!
बस कमी इतनी सी झलकी अंजुमन से,
मेरे रूठे चाँद से चाँदनी बेनूर लगती रही!
 इबादतों में तुमको ही माँगाती रही रब से,
मैं इबादतों की तरह तमको मनाती गयी!
इबादतें बेकाम रही जो बेनाम रही तुमसे,
मैं तेरे नाम को अब इबादत समझने लगी!
महफ़िल तो सज़ी रही हमारी उलफ़त से,
जो नज़्म-ए-वस्ल हमारी पढ़नी शुरू हुई!
बस कमी इतनी सी झलकी अंजुमन से,
मेरे रूठे चाँद से चाँदनी बेनूर लगती रही!
ashisaxena2926

Ashi Saxena

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