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इस धरती के शून्य क्षितिज से मिलती अब कोई आस नही म

इस धरती के शून्य क्षितिज से 
मिलती अब कोई आस नही
मौसम बीते, बादल गुजरे, 
होती पर बरसात नही 

सूने पथ पर आँख है प्यासी 
अब तो आकर मिल जाओ 
कारे बदरा इतना बरसो ,
मुझसे, मुझमें घुल जाओ

                  Gyanendra singh कारे बदरा इतना बरसो मुझसे , मुझमें घुल जाओ
इस धरती के शून्य क्षितिज से 
मिलती अब कोई आस नही
मौसम बीते, बादल गुजरे, 
होती पर बरसात नही 

सूने पथ पर आँख है प्यासी 
अब तो आकर मिल जाओ 
कारे बदरा इतना बरसो ,
मुझसे, मुझमें घुल जाओ

                  Gyanendra singh कारे बदरा इतना बरसो मुझसे , मुझमें घुल जाओ