आवारा पल पल बदलती रंग ये जिंदगी बन आवारा बह जाता हर पवन जब जब आगे बढ़ना चाहूँ ढ़ह जाती मिट्टी..लड़खड़ा जाते मेरे क़दम बन आवारा अब मैं भी फिरती हूँ जैसे कोई प्यासा हो सागर के अंदर आवारा सी मेरी हसरतें जो भटकता है मन ही मन जो फुर्सत हो तो मुझे पढ़ना मैं हूँ आवारा सी अनकही कथन..... आवारा